غزل ۱۵۶۰ مولانا
۱ | تا عشقِ تو سوخت هَمچو عودم | یک عُقده نَمانْد از وجودم | |
۲ | گَهْ بارویِ چَرخْ رَخْنه کردم | گَهْ سِکّه آفتابْ سودم | |
۳ | چون مَهْ پِیِ آفتاب رفتم | گَهْ کاهیدم گَهی فُزودم | |
۴ | از تو دلِ من نمیشَکیبَد | صد بار مَنَش بیازمودم | |
۵ | این بَخشِشِ توست زورِ من نیست | گَر حَلْقه سیم دَررُبودم | |
۶ | گَر دشمنِ چاشْتم خُفاشَم | وَرْ مُنْکِرِ احمدم جُهودم | |
۷ | تَفهیم تو تیز کرد گوشم | کان رازِ شَریف را شُنودم | |
۸ | سیل آمد و بُرد خُفتگان را | من تِشنه بُدَم نمیغُنودم | |
۹ | صَیقل گَرِ سینه امرِ کُنْ بود | گَر من زِ کَسَل نمیزُدودم | |
۱۰ | توفیر شُد از مَکارِم تو | هر تَقصیری که من نِمودم | |
۱۱ | من جود چرا کُنم به جَلْدی | کَزْ جودِ تو مو به مویْ جودم | |
۱۲ | از عشقِ تو بر فَرازِ عَرشَم | گَر بالایم وَگَر فُرودم | |
۱۳ | از فَضْلِ تو است اگر ضَحوکَم | از رَشکِ تو است اگر حَسودم | |
۱۴ | بس کردم ذکرِ شَمسِ تبریز | ای عالِمِ سِرِّ تار و پودم |
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