غزل ۱۵۷۹ مولانا
۱ | ما آبْ دَریم ما چه دانیم | چه شور و شَریم ما چه دانیم | |
۲ | هر دَم زِ شرابِ بینشانی | خود مَست تَریم ما چه دانیم | |
۳ | تا گوهرِ حُسنِ تو بِدیدیم | رُخْ هَمچو زَریم ما چه دانیم | |
۴ | تا عشقِ تو پایِ ما گرفتهست | بی پا و سَریم ما چه دانیم | |
۵ | خُشک و تَرِ ما همه تویی تو | خوش خُشک و تَریم ما چه دانیم | |
۶ | سَرحَلْقه زُلفِ تو گرفتیم | خوش میشُمَریم ما چه دانیم | |
۷ | گَر زیر و زَبَر شود دو عالَم | زیر و زَبَریم ما چه دانیم | |
۸ | گَر سَبزه و باغْ خُشک گردد | ما از تو چَریم ما چه دانیم | |
۹ | گُلْزار اگر همه بِریزَد | گُل از تو بَریم ما چه دانیم | |
۱۰ | گَر چَرخْ هزار مَهْ نِمایَد | در تو نِگَریم ما چه دانیم | |
۱۱ | گَر زان کِه شِکَر جهان بگیرد | ما باده خوریم ما چه دانیم | |
۱۲ | شَمسِ تبریز ز آفتابَت | هَمچون قَمَریم ما چه دانیم |
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